15 मार्च को गूंजेगी बारूद की गूंज, मेनार गांव में फिर जलेगा जोश, 400 साल पुरानी परंपरा का रोमांचक नजारा

15 मार्च को गूंजेगी बारूद की गूंज, मेनार गांव में फिर जलेगा जोश, 400 साल पुरानी परंपरा का रोमांचक नजारा


होली का त्योहार भारत के हर कोने में अलग-अलग अंदाज़ में मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान के मेनार गांव की होली सबसे अनूठी है। यहां रंगों की जगह बारूद उड़ता है, बंदूकों की गूंज सुनाई देती है, और तलवारों की गैर निकलती है। 400 साल पुरानी यह परंपरा मुगलों पर विजय के जश्न के रूप में शुरू हुई थी और आज भी पूरे जोश के साथ मनाई जाती है। इस वर्ष भी 15 मार्च को मेनार गांव में यह ऐतिहासिक परंपरा दोहराई जाएगी।

राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित मेनार गांव अपनी अनोखी होली के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर हर साल रंगों की जगह बारूद की होली खेली जाती है। यह परंपरा पिछले 400 वर्षों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस वर्ष भी 15 मार्च को यह अनूठी होली धूमधाम से मनाई जाएगी।

मेनार गांव की अनूठी परंपरा

जहां पूरे देश में होली रंगों और गुलाल से खेली जाती है, वहीं मेनार गांव में यह त्योहार तलवारों की गैर, तोपों की गर्जना और बंदूकों की आवाज़ के बीच मनाया जाता है। यहां के लोग धुलंडी के अगले दिन जमराबीज पर यह खास परंपरा निभाते हैं। यह कोई आम खेल नहीं, बल्कि 400 साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है।

इतिहास से जुड़ी है यह होली

मेनार गांव की बारूद की होली का इतिहास मेवाड़ और मुगलों के संघर्ष से जुड़ा हुआ है। जब मुगलों के अत्याचार चरम पर थे, तब महाराणा प्रताप ने उनके खिलाफ युद्ध छेड़ा। इसी दौरान मेनार गांव में भी मुगलों की एक टुकड़ी तैनात थी, जो वहां के लोगों पर अत्याचार कर रही थी।

मेनारिया ब्राह्मणों ने एक योजना बनाई और मुगलों को गैर उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। जब गैर शुरू हुई, तो गांव के लोगों में ऐसा जोश उमड़ा कि उन्होंने इसे युद्ध में बदल दिया। इस लड़ाई में मेनारवासियों ने मुगलों को हराकर गांव को आज़ाद करवा लिया। तभी से इस विजय की खुशी में हर साल यह परंपरा निभाई जाती है।

15 मार्च को फिर गूंजेंगी बंदूकें

हर साल की तरह इस साल भी 15 मार्च को मेनार गांव में बारूद की होली खेली जाएगी। इस दिन मेनारिया ब्राह्मणों के पांच महलों से लोग पारंपरिक मेवाड़ी वेशभूषा में सज-धजकर ओंकारेश्वर चौक पर एकत्र होते हैं। जैसे ही रात होती है, तोपों की गड़गड़ाहट और बंदूकों की आवाज़ से माहौल युद्ध के मैदान जैसा प्रतीत होता है। फिर शुरू होती है तलवारों की जबरी गैर, जिसमें योद्धा अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हैं।

गांव में छा जाता है उत्साह

जमराबीज का त्योहार आते ही गांव के लोग अपनी पुरानी तलवारों और बंदूकों की सफाई में जुट जाते हैं। घरों में उत्सव की तैयारियां की जाती हैं और मेनारवासी इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह आयोजन न सिर्फ परंपरा और संस्कृति को संजोए रखता है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ता है।

इस त्योहार की खास बात यह है कि यहां के लोग विदेशों या दूसरे राज्यों में नौकरी और व्यापार करने के बावजूद इस दिन अपने गांव लौटते हैं। वे इसे केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि अपनी ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक मानते हैं।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

चूंकि इस आयोजन में बारूद और हथियारों का उपयोग किया जाता है, इसलिए प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। हर वर्ष स्थानीय प्रशासन पुलिस बल की तैनाती करता है ताकि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो। मेनारवासी भी इस परंपरा को अनुशासन और मर्यादा के साथ निभाते हैं।

पर्यटकों के लिए आकर्षण

मेनार गांव की यह अनोखी होली अब पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गई है। हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग इसे देखने के लिए आते हैं। यह न सिर्फ एक रोमांचक अनुभव होता है, बल्कि राजस्थान की ऐतिहासिक संस्कृति को करीब से देखने और समझने का अवसर भी प्रदान करता है।